26 Sep, 2022
/
Organic Farming
उड़द की खेती
उड़द की खेती (Urad Dal Farming)
से सम्बंधित जानकारी
उड़द एक दलहनी फसल है, जिसकी
खेती कर किसान भाई कम समय में अच्छी
कमाई कर सकते है | भारत में उड़द को कलाई, माष, माह, और
उरद के नाम से भी पुकारा जाता है | उड़द की दाल में अनेक
प्रकार के पोषक तत्व जैसे – फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिनबीकाम्प्लेक्स, कैल्शियम
और प्रोटीन के तत्व प्रचुर मात्रा में उपस्थित होते है | इसके अलावा इसमें
अन्य दालों की तुलना में ल्यूसीन, लाईसीन, आइसोल्यूसिन, आरजिनीन
और फास्फोरस अम्ल और एमिनोएसिड की8 गुना अधिक मात्रा पाई
जाती है, जिस
कारण इसका वैज्ञानिक मान अधिक है |
उड़द की दाल को
पकाकर खाने के अलावा इसके इस्तेमाल से कई प्रकार के व्यंजन जैसे हलवा, इमरती, पापड़, कचौड़ी, इडली, बड़ी, बडे़, पूरी,डोसा आदि को तैयार किया जाता है | इसके सूखे एवं हरे पौधों से पशुओ के लिए सर्वश्रेष्ठ चारे को प्राप्त किया
जाता है | इसकी खेती करने से भूमि की उवर्रक क्षमता
भी बढ़ती है | भारत में उड़द की खेती खरीफ और जायद दोनों
ही मौसम में कर सकते है | गर्मियों का
मौसम इसकी फसल के लिए अधिक उपयुक्त होता है, उस दौरान इसके खेत में पानी और उवर्रक की पूर्ती कर अधिक उत्पादन भी प्राप्त
कर सकते है | यदि आप भी उड़द की खेती करने का मन बना
रहे है, तो इस पोस्ट में आपको उड़द की खेती कैसे करें (Urad Dal Farming in Hindi) इसके बारे में जानकारी दी जा रही है |
उड़द की खेती के लिए
उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Vigna Mungo Cultivation Suitable Soil, Climate
and Temperature)
उड़द
की खेती के लिए बलुईदोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती के लिए
उचित जल-निकासी वाली भूमि का होना जरूरी होता है, तथा सामान्य P.H. मान वाली भूमि में इसकी खेती को आसानी से कर सकते है |
उड़द
की फसल उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली है | इसके पौधों को अच्छे
से विकास करने के लिए शुष्क और आद्र जलवायु वाले मौसम की आवश्यकता होती है | सामान्य
बारिश में भी इसके पौधे अच्छे से विकास करते है | जब इसकी फसल पकने
वाली होती है, उस
समय इसे गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है |
इसके
पौधों को आरम्भ में अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, तथा
पौधों के विकास के समय 30 डिग्री का तापमान
उपयुक्त होता है | इसके पौधों को 45 डिग्री के अधिक तापमान पर अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, इससे
अधिक तापमान इसके पौधों के उपयुक्त नहीं होता है |
उड़द की उन्नत किस्में (Urad Improved Varieties)
वर्तमान
समय में उड़द की कई उन्नति किस्मो को जलवायु और अधिक पैदावार देने के लिए तैयार
किया गया है | जो
इस प्रकार है :-
टी. 19
उड़द
की यह किस्म कम समय में पककर तैयार हो जाती है | इसके पौधों को तैयार
होने में 70 से 80 दिन का समय लग जाता
है | इसके
पौधों में निकलने वाले दानो का आकार मोटा और रंग गहरा काला होता है | यह
किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 से 12 क्विंटल की पैदावार देती है | इसकी खेती खरीफ और
जायद दोनों ही मौसम में की जा सकती है |
कृष्णा
कृष्णा
किस्म के पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 100 दिन बाद पैदावार देने
के लिए तैयार हो जाते है | इसमें निकलने वाले
दानो का रंग गहरा भूरा होता है | यह किस्म प्रति
हेक्टेयर के हिसाब से 12 क्विंटल की पैदावार
देती है |
पंत यु 19
उड़द
की इस किस्म को तैयार होने में 80 से 90 दिन का समय लग जाता है | इसमें निकलने वाले
पौधों पर पीले रंग का मौजेक रोग दिखाई देता है | इसके पौधे सामान्य
आकार के होते है | भारत में उड़द की फसल मध्य और
पश्चिमी इलाको में की जाती है | यह प्रति हेक्टेयर के
हिसाब से 10 से 12 क्विंटल की पैदावार
देने के लिए जानी जाती है |
जे. वाई. पी.
भारत
के उत्तर प्रदेश राज्य में उड़द की इस किस्म को अधिक मात्रा में उगाया जाता है | इस
किस्म की फसल को तैयार होने में 80 से 90 दिन का समय लगता है | इसमें निकलने वाले
पौधे दो से ढाई फ़ीटलम्बे होते है | जिसमे प्रति हेक्टेयर
के हिसाब से 13 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो जाती है |
आर.बी.यू. 38
आर.बी.यू.
38 एक कम समय में तैयार होने वाली फसल है, जो बीज रोपाई के
तक़रीबन 80 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है | जिसका उत्पादन प्रति
हेक्टेयर10 क्विंटल तक होता है | इसमें निकलने वाले
दानो का आकार बड़ा और रंग में हल्का काला होता है | इसके पौधों में पत्ती
धब्बा रोग नहीं देखने को मिलता है |
यु.जी. 218
इस
किस्म को भारत के हरियाणा, राजस्थान, पंजाब
और दिल्ली जैसे राज्यों में खासकर उगाया जाता है | यह किस्म कम समय में
अधिक उत्पादन के लिए उगाई जाती है | इसके पौधों को तैयार
होने में 80 दिन का समय लग जाता है | इसके पौधों में पीले
मौजेक रोग नहीं देखने को मिलता है | यह किस्म प्रति
हेक्टेयर के हिसाब से 15 क्विंटल तक की
पैदावार देती है |
इसके
अतिरिक्त भी उड़द की बाजार में कई उन्नत किस्मे मौजूद है, जिन्हे अलग-अलग
जलवायु के हिसाब से अधिक उत्पादन के लिए पूरे भारत में उगाया जाता है, जो
कि इस प्रकार है :- जवाहर उड़द 2, के यू- 309, एलबी जी- 20, के यू- 92-1, वांबन- 1, आजाद उड़द- 1, ए डीटी- 4, टीयू- 94-2, ए डीटी- 5, ए के यू- 4, यू- 301 |
उड़द के खेत की तैयारी और
उवर्रक की मात्रा (Urad Field
Preparation and Fertilizer Quantity)
उड़द की खेती करने से
पहले उसके खेत को जुताई के साथ उवर्रक की उचित मात्रा देकर तैयार कर लिया जाता है | इसके
लिए सबसे पहले खेती की गहरी जुताई कर ली जाती है, जुताई के बाद खेत को
कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में
प्राकृतिक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में
अच्छे से मिला देना होता है | इसके लिए खेत की दो
से तीन तिरछी जुताई की जाती है | इसके अतिरिक्त यदि आप
रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको
बीजो की रोपाई के बाद 80 किलो डी.ए.पी. की
मात्रा का छिड़काव करना होता है |
इसके
बाद यदि किसान भाई उड़द का उत्पादन जायद फसल के रूप में करना चाहते है, तो
उसके लिए खेत में पानी लगा कर पलेव कर दिया जाता है | पलेव करने के कुछ दिन
बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, तब रोटावेटर लगाकर
जुताई करवा दे, इससे
खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी | इसके बाद खेत में
पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है | जिससे खेत में
जल-भराव नहीं होता है | इसके पौधे स्वयं ही
नाइट्रोजन की पूर्ती कर लेते है, किन्तु फिर भी 25 KG यूरिया का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में करना होता
है |
उड़द के बीजो की रोपाई का
सही समय और तरीका (Urad Seeds
Right time and Method for Sowing)
उड़द
के बीजो की रोपाई से पहले उन्हें थिरम या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित
कर लिया जाता है | इसके अतिरिक्त यदि बीजो की रोपाई
राजोबियमकल्चर द्वारा की जाती है, तो उत्पादन में 15% तक की बढ़ोतरी देखने को मिलती है| राजोबियमकल्चर विधि
द्वारा रोपाई करने से पहले बीजो को राइजोबियम की उचित मात्रा गुण और पानी के काढ़े
में मिलाकर घोल को तैयार कर लिया जाता है, इस घोल से बीजो को 6 से
7 घंटे
के लिए रख दिया जाता है | इसके बाद इन बीजो की
रोपाई कर दी जाती है,यदि बीजो की रोपाई जायज़ के मौसम
में की जानी है, तो
उसके लिए 15 से 20 KG बीजो की आवश्यकता
होती है | इसके
अलावा खरीफ के मौसम में रोपाई करने के लिए 10 से 12 KG बीज ही लगते है |
उड़द
के बीज खेत में तैयार की पंक्ति में लगाए जाते है| पंक्ति में रोपाई के
लिए मशीन का इस्तेमाल किया जाता है | खेत में तैयार की गई
पंक्तियों के मध्य 10 से 15 CM दूरी होती है, तथा बीजो को 4 से
5 CM की दूरी पर लगाया जाता है | खरीफ के मौसम में
अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके बीजो की रोपाई जून के महीने में की जानी
चाहिए | जायद
के मौसम में अच्छी पैदावार के लिए बीजो को मार्च और अप्रैल माह के मध्य में लगाया
जाता है |
उड़द के पौधों की सिंचाई (Urad Plants Irrigation)
उड़द के पौधों को
सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसकी
प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के 20 से 25 दिन बाद कर दी जाती है | इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल में दो
से तीन और सिंचाई की आवश्यकता होती है | जब इसके पौधों पर फली
बनने लगे उस दौरान इसके खेत में उचित नमी की आवश्यकता होती है | इससे
फलियों में निकलने वाले दानो का आकार और संख्या दोनों में ही वृद्धि होती है |
उड़द के पौधों में खरपतवार
नियंत्रण (Urad Plants
Weed Control)
उड़द के पौधों में
खरपतवार नियंत्रण पाने के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों ही विधियों का इस्तेमाल
किया जाता है | रासायनिक
विधि द्वारा फसल में खरपतवार नियंत्रण पाने के लिए
बीजो की रोपाई के तुरंत बाद खेत में पेन्डीमिथालीन उचित मात्रा का छिड़काव किया
जाता है | इसके
अलावा प्राकृतिक विधि द्वारा खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए निराई – गुड़ाई विधि का इस्तेमाल
किया जाता है |
इसके
लिए पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 30 दिन बाद कर दी जाती
है, तथा
बाक़ी की दूसरी और तीसरी गुड़ाई को 15 दिन के अंतराल में
करना होता है |
उड़द के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Urad Plants Diseases Their Prevention)
सफ़ेद मक्खी रोग
इस
किस्म का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है, जिससे पौधों की
पत्तियों पर पीला मौजेक रोग बढ़ जाता है | सफ़ेद मक्खी का कीट
रोग पौधे के नाजुक अंगो का रस चूस कर उसे पूरी तरह से नष्ट कर देता है | इस
रोग से बचाव के लिए ट्रायजोफॉस या डायमिथोएट की उचित मात्रा का घोल बनाकर पौधों पर
कर दिया जाता है |
पत्ती मुडाई का रोग
पत्ती
मुडाई रोग पौधों को अधिक प्रभावित करता है | इस रोग के लग जाने से
पौधे की पत्तियां अंदर की और मुड़ पीली पड़ जाती है | जिससे कुछ समय
पश्चात् ही पत्तियां गिरने लगती है, और पौधे का विकास
पूरी तरह से रुक जाता है | इस रोग से बचाव के
लिए ऐसीफेट या डायमेथोएट का छिड़काव पौधों पर करना होता है |
फली छेदक रोग
फली
छेदक रोग की सुंडीफलियों के अंदर उपस्थित दानो को हानि पहुँचाती है | यह
रोग पैदावार को अधिक प्रभावित करता है | इस रोग से बचाव के
लिए उड़द के पौधों पर आरंभ में ही मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिड़काव करना
होता है | इसके
अतिरिक्त यदि रोग का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है, तो 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार और छिड़क दे |
पीला चितेरी रोग
पीला
चितेरी एक विषाणु जनित रोग है, जिसका प्रभाव पौधों
की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित
होने पर पौधे की पत्तियां पीले रंग की हो जाती है | यह विषाणु रोग एक
पौधे से दूसरे पौधे में तेजी से फैलता है | जिससे पूरी फसल के
नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है | इमिडाक्लोप्रिड या
डायमिथोएट की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
पत्ती छेदक
यह
एक किस्म का कीट जनित रोग है, जिसे सेमीलूपर नाम से
भी जानते है | यह
कीट रोग पौधों की पत्तियों को खाकर पौधे की वृद्धि को पूरी तरह से रोक देता है | इससे
पौधे की पूरी पत्तियों पर छेद दिखाई देने लगते है | जिसके बाद पौधे
प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते है | इस रोग से बचाव हेतु
फेनोफॉस की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना होता है |
उड़द की फसल की कटाई, पैदावार और लाभ (Urad Crop Harvesting, Yield and Benefits)
उड़द
के पौधे बीज रोपाई के तक़रीबन 80 से 90 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | जब
पौधों की पत्तियां पीले रंग की और फलियों का रंग काला दिखाई देने लगे उस दौरान
इसके पौधों को जड़ के पास से काट लिया जाता है | इसके पौधों को खेत
में ही एकत्रित कर सुखा लिया जाता है | इसके बाद सूखी हुई
फलियों को थ्रेसर के माध्यम से निकाल लिया जाता है | उड़द के पौधे एक
हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 12 क्विंटल का उत्पादन
दे देते है | जिसका
बाज़ारी भाव 8 हज़ार
रुपये प्रति क्विंटल तक होता है | जिससे किसान भाई इसकी
एक बार की फसल से एक हेक्टेयर के खेत में 80 से 90 हजार रूपए तक की कमाई आसानी से कर सकते है |
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